RSS का काला सच | 1925-2025

साथियों आज के इस पोस्ट में हम बात करेंगे राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के बारे में जो राष्ट्रवाद के नाम पर कैसे देश का बंटाधार कर रहा है कैसे लोगों को धर्म के नाम भड़का रहा है लोगों की भावनाओं के साथ खेल रहा है इसी पोस्ट में हम जानेंगे कि आरएसएस के इतिहास के बारे में इसके अलावा आरएसएस के आजादी की लड़ाई में योगदान पर भी विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।

इतिहास:

आरएसएस की स्थापना 1925 में नागपुर में विजयदशमी के अवसर पर हेडगेवार ने की थी। इसकी स्थापना का प्रमुख उदेश्य देश को आजाद कराना था मगर समय के साथ इसका उदेश्य भी बदल गया आगे जाकर यह एक कट्टर हिंदूवादी संगठन बनकर रह गया। आरएसएस का इतिहास इतना भी गौरवपूर्ण नहीं रहा है कि उसे याद किया जाये क्योंकि ऐसे भी बहुत से सबूत मिले है जिनमे आरएसएस के लोग अंग्रेजों कि चाटूकारिता व गुलामी भी करते नजर आये है। कई इतिहासकारों का मानना है कि आरएसएस अंग्रेजों की गुलामी से खुश था। संघ चाहता था कि हिंदूस्तान अंग्रेजो का ही गुलाम बना रहे इसके सदस्य अंग्रेजो के मुखबिर के तौर पर काम करते थे।

वीर सावरकर को बीजेपी व आरएसएस अपना आदर्श मानती है मगर यही वीर सावरकर अंग्रेजो द्वारा काला पानी की सजा दिए जाने पर अंग्रेजो के समाने गिड़गिड़ा कर अपनी रिहाई करवाई। हाँ 1910 से पहले सावरकर ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी मगर 1911 के बाद सावरकर ने भारत की आजादी के लिए कोई भी लड़ाई नही लड़ी थी। अंग्रेजो ने सावरकर को इसी शर्त पर रिहा किया कि वह अब अंग्रेजो के लिए काम करेगा और सावरकर ने ऐसा ही किया ।

आरएसएस कभी भी हिन्दूस्तान को लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाने के पक्ष मे नहीं रहा है क्योंकि आरएसएस की विचारधारा मनुस्मृति से प्रभावित रही थी। संघ की सोच लोकतांत्रिक भारत के मूल्यों से कहीं भी मेल नहीं खाती है क्योंकि भारत जहाँ एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है संघ कभी नहीं चाहता कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बने वे तो भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाने के पक्ष में रहा है। इसके अलावा कई ऐसे भी सबूत मिले है जिसमें संघ भारत के तिरंगे को भी नकारता मिला और इसे अशभु रंग का मेल बताया है।
आरएसएस के सरसंघसंचालक माधवराव सदाशिव गोलवकर ने शहीद भगतसिंह की कुर्बानी पर भी कई बार सवाल उठाये उनका मानना था कि भगतसिंह की स्वतंत्रता की लड़ाई में कहीं ना कहीं बहुत ही बड़ी कोई ना कोई कमी थी।

आरएसएस गोडसे पर अपनी सुविधानुसार राजनीति करता आया है मगर महात्मा गांधी की हत्या करने वाला गोडसे संघ का सदस्य रहा है इस बात का खुलासा 1980 में नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल न खुद किया है और कई इतिहासकारो ने भी गोडसे को संघ का सदस्य माना है। जब गोडसे ने गांधीजी की हत्या की तब संघ ने देश में अलग-अलग अपनी शाखाओं में मिठाईयां बांटी थी इसी वजह से संघ पर 1948 में पूरे देश में बैन लगाया था जो कि 18 महीने तक रहा था।

राजनीति:

भारत में संघ कभी भी उस मुकाम पर नहीं पहुंचा जिस मुकाम पर उसको पहुंचना था क्योंकि लोगों ने संघ पर कभी भी इतना भरोसा जताया ही नहीं। इसी मुकाम पर पहुँचने के लिए संघ ने भारतीय जनसंघ की स्थापना करवाई जो आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी में बदल गया और वहीं भाजपा आज पूरे देश पर शासन कर रही है मगर सही मायनो में भाजपा के पीछे संघ का ही हाथ है और यह हम सबके सामने भी है।
संघ की हमेशा से ही यही राजनीति रही है कि वह देश में राष्ट्रवाद का सर्टिफिकेट बांटने का काम करते है संघ ही तय करता है कि असली राष्ट्रभक्त कौन है? और कौन देशद्रोही है। मगर संघ की इसी राजनीति का समझने की जरूरत है क्योंकि संघ का ऐसी राजनीति के पीछे एक ही मकसद है वामदलों व विपक्ष को राष्ट्रवाद के नाम पर पीछे धकेलना। संघ का उद्देश्य सिर्फ राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को गलत राह दिखाना है क्योंकि जिस संघ का आजादी की लड़ाई में खुद का कोई योगदान का उल्लेख नहीं है वे क्या दूसरो को राष्ट्रवाद की शिक्षा दे सकता है? संघ सिर्फ देश को धर्म के नाम पर बांटने का काम करता आया है और शायद ऐसा ही करता रहे।

साथियों संघ की स्थापना के बाद से अभी तक संघ में कभी-भी कोई पिछड़ी या दलित समाज से इसका सर संचालक नहीं बना है इसमें सिर्फ ब्राह्मणों व बणियों जैसे अगड़ी जातियों का ही बोल-बाला रहा है।

निष्कर्ष:

उपरोक्त तमाम बिंदुओं को पढ़ने के बाद आप भी समझ गए होंगे की आरएसएस का अपना इतिहास कैसा दागदार रहा है जो आरएसएस देश के संविधान में निष्ठा नहीं रखे जो गांधी की हत्या करवा दे वो आरएसएस अपनी राजनीति के लिए कुछ भी कर सकता है इसलिए इसका बहिष्कार होना चाहिए।

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